गिरे बुज़ुर्ग को उठाने भरे बाजार में कोई नहीं आया,
गोरी का रुमाल क्या गिरा पूरा बाजार दौड़ आया…
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होता अगर मुमकिन तुझे साँस बना कर रखते सीने में….!
तू रुक जाये तो मैं नही, मैं मर जाऊ तो तू नही….!!
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तक़दीर का ही खेल है सब,
पर ख़्वाहिशें है की समझती ही नहीं…..
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यूँ तो हम अपने आप में गुम थे,
सच तो ये है की वहाँ भी तुम थे..!
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आदत हो गयी है तेरे करीब रहने की……
तेरी सांसो की खुशबु वाला इत्र मिलता है कही….!!!?
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लोग समझते हैं के मैं तुम्हारे हुस्न पर मरता हूँ..
अगर तुम भी यही समझते हो तो सुनो..
जब हुस्न खो दो तब लौट आना…
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सारे गमों को पैरों से ठुकरा देते हैं,
हम उदास हों तो बस मुस्कुरा देते हैं.
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मुझसे मां से दो पल की जुदाई सही नहीं जाती हॆ…
पता नहीं बेटीयां ये हुनर कहां से लाती हॆं…!!!
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अजीब कहानी है इश्क और मोहब्बत की,
उसे पाया ही नहीं फिर भी खोने से
डरता हूँ…
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बहुत याद आते हो ……..”तुम”
दुआ करो मेरी याददाश्त चली जाये…!!!!
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तुम्ही ने छुआ होगा….
हवा यूँ बेवजह कभी नहीं महकी..
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क़्या लूटेगा जमाना खुशीयो को हमारी,
हम तो अपनि खुशिया
दूसरो पर लूटा के जिते है!.
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पतंग सी हैं जिंदगी, कहाँ तक
जाएगी…..!!
रात हो या उम्र, एक ना एक दिन कट
ही जाएगी….!!
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उस घडी मेरा इश्क हदें भूल जाता है,
जब लडते लडते वो कहती हैं: “लेकिन प्यार मैं ज्यादा करती हू तुमसे” !!!
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हमे सिंगल रेहने का शौक नही,
हमारा तेवर झेल सके वो आज तक मिली नही..!!
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रिश्ते अगर बढ़ जाये हद से तो ग़म मिलते है…
इसलिए आजकल हम हर शख्स से कम मिलते है…
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महफ़िलों की शान न समझना मुझे;
मैं तो अक्सर हँसता हूँ गम छुपाने के लिये…..
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बहुत जी चुके उनके लिये जो मेरे लिये सब कुछ थे…
अब जीना है उनके लिये जिनके लिये मैं सब कुछ हूँ…
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सँभाले तो हूँ ख़ुद को तुझ बिन मगर
जो छू ले कोई तो बिखर जाऊँ मैं…
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तुम मुझे अब याद नहीं आते…
तुम मुझे याद हो गये हो अब…
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मेरे यार मुख्तसर सी बात है ,
मुझे तुम से बेइंतिहा प्यार है ….
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ज़िंदगी की उम्र कुछ कम हो रही थी
वो साँसे दे गयी फिर से मेरे दर्द को !!!
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ख़्वाबों को तो अक्सर हकीकत की ज़मीन पर ही रक्खा है,
ये बदबख्त अरमान चले गए आसमानों की दहलीज़ परे !!
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शीशे में डूब कर पीते रहे उस ‘जाम’ को…
कोशिशें तो बहुत की मगर, भुला न पाए एक ‘नाम’ को !!
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हर तन्हा रात में इंतज़ार है उस शख़्स का.. जो कभी कहा करता था तुमसे बात न करूँ तो रात भर नींद नहीं अाती…
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इक ठहरा हुआ खयाल तेरा,
कितने लम्हों को रफ़्तार देता है..
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बचपन में पिताजी के बटुए में हमेशा मेरी जरूरतों से ज्यादा पैसे रहते थे…
ये कारनामा मैं कभी अपने बटुए से नहीं दिखा पाया ।।
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पिता जी ने इतना पैसा खर्च करके पढना-लिखना सिखाया,
पर ऑफिस की बिल्डिंग में एंट्री अंगूठा टेक कर ही मिलती है..
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लाजिमी नहीं की आपको आँखों से ही देखुं।
आपको सोचना आपके दीदार से कम नहीं।।
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बेचैनी जब भी बढ़ती है धुंए में उड़ा देता हूँ ,
और लोग कहते हैं मैं सिगरेट बहुत पीता हूँ… !
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वो जो तुमने एक दवा बतलाई थी ग़म के लिए,
ग़म तो ज्यूं का त्यूं रहा बस हम शराबी हो गये….
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तुम सामने आये तो, अजब तमाशा हुआ..
हर शिकायत ने जैसे, खुदकुशी कर ली..!!
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“पहुँच गए हैं, कई राज मेरे गैरों के पास,
कर लिया था मशवरा,
इक रोज़ अपनों के साथ…!!”
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सुलग रहे है कब से मेरे, दिल में ये अरमान,
रोक ले अपनी बहो में तू, आज मेरे तूफ़ान |
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जब जब में लेता हूँ साँस तू याद आती है,
मेरी हर एक साँस मे तेरी खुश्बू बस जाती है,
कैसे कहूँ तेरे बिना में ज़िंदा हूँ,
क्यूंकी हर साँस से पहले तेरी खुश्बु आती है…
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दिया है ठोकरों ने सम्हलने का हौसला
हर हादसा ख़याल को गहराई दे गया…
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अक्सर पूछते है लोग, किसके लिए लिखते हो …??
अक्सर कहता है दिल…..”काश कोई होता”…!!
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अपने गमो की तू नुमाइश न कर,
यूँ क़ुदरत से लड़ने की कोशिश न कर,
जो हे कुदरत ने लिखा वो होकर रहेगा,
तू उसे बदलने की आजमाइश न कर ।।
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जिस दिन आपने अपनी जिन्दगी को खुलकर जी लिया,
वही दिन आपका है, बाकि तो सिर्फ केलेंडर की तारीखें हैं।
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जो दिलो में शिकवे और जुबान पर शिकायते कम रखते है,
वो लोग हर रिश्ता निभाने का दम रखते हैं…
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ए मेरे दिल ,
कभी तीसरे की उम्मीद भी ना किया कर ,
सिर्फ तुम और मैं ही हैं इस दश्त-ए-तन्हाई में …….
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कभी तुम मुझे अपना तो कभी गैर करते गये,
देख मेरी नादानी हम सिर्फ तुम्हे अपना कहते गये…!!
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लोग पूछते है ये शायरी कैसे बनी ?
मैं कहता हूँ- कुछ आँसू कागज़ पर गिरे और छप गए…
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उसकी प्यारी मुस्कान होश उड़ा देती हैं,उसकी आँखें हमें दुनिया भुला देती हैं,आएगी आज भी वो सपने मैं यारो,बस यही उम्मीद हमें रोज़ सुला देती हैं..
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बरसात आये तो ज़मीन गीली न हो,
धूप आये तो सरसों पीली न हो,
ए दोस्त तूने यह कैसे सोच लिया कि,
तेरी याद आये और पलकें गीली न हों।
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एक ही शख्स था मेरे मतलब का
आखिरकार
वो भी मतलबी निकला..!!
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