Saturday, October 25, 2014

नया साल मुबारक हो

अस्सलामु अलेकुम
     हकीम दानिश

                                      Islamic New Year
  
                                           1436 Hizri

तमाम उम्मते मुस्लीमा को मुबारक      हौ।                             

वलीयो की ज़िन्दगी हे पसीना हुसैन का
जुल्मौ सितम की मौत है जिना हुसैन का
कह दो यजिदीयो से वो अपने दिन गिने
नज़दीक आ रहा हे महीना हुसैन का

इसलामी कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रमुल की शुरूआत होते ही दिलसोज एवं दिल दहलाने वाला वह मंजर सामने आ जाता है। जहां बगदाद शहर की सरजमीन कूफा की रतीली मैदान में हुकुमरान यजीद के हुक्म पर मलऊन ईब्ने ज्याद की बेरहम फौज ने ऐन सिजदा की हालत से नवासे रसूल पैगम्बरे इसलाम हजरत ईमाम हुसैन को शहीद कर दिया। इतिहास गवाह है कि जब बगदाद वालों की मिन्नत समाजत एवं बुलाबे पर हजरत ईमाम आली मुकाम पैगम्बरे इसलाम का नवासा एवं हजरत अली एवं बीबी फातिमा का लख्तेजिगर मदीना शरीफ के निवासियों द्वारा बगदाद न जाने देने पर आमदा थे। वैसी हालत में बगदाद वालों को दी गई वाअदा के मुताबिक हजरत इमाम हुसैन मुसलमानों और अपने नाना के उम्मतियों को यजीद के जुल्मोसितम से निजात दिलाने के लिए 73 साथियों की जमाअत के साथ मदीना शरीफ से बगदाद चल पड़े। इस मौका पर उम्मते इसलाम के फिंदाईनों की आंखों से महबूब पैगम्बर के नवासे से जुदा होने के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा था। मदीना श रीफ वाले जानते थे कि जिस सरजमीन ने उनके वालिद चौथे खलीफे इस्लाम हजरत अली और बड़े साहबजादे हजरत इमाम हसन (रजियल्लाहो तआला अन्होमा) को धोखे से शहादत के मुकाम पर पहुंचा दिया। भला बगदाद वाले छोटे बेटे हजरत इमाम हुसैन के साथ क्या बेहतर सुलूक करेंगे। इस्लामी तारीख का हवाला देते हुए मौलाना मो.वसी रहमानी, हेडमोलवी मदरसा मुहम्मदिया सुपौल बताते हैं कि हजरत इमाम हुसैन की बगदाद खानगी की खबर आग की तरह चहुंओर फैल गई तथा इसकी खबर दुश्मने इसलाम यजीद मलउन को भी मिल गई। बगदाद का जालिम हुक्मरान यजीद ने बगदाद से दूर कूफा की रेतीली मैदान में इब्ने ज्याद की सिपहसलारी में फौजी ताकत के बल पर हजरत एवं उनके साथियों को रुकने पर मजबूर कर दिया। नहरे फुरात दजला के एक ओर डूब्ने ज्याद बड़ी तादाद में लश्कर फौज लेकर हथियारों से लैस तो दूसरे किनारे में हजरत इमाम हुसैन अपने मुट्ठीभर साथियों के साथ अल्लाह तआला के भरोसे आमने सामने मौजूद थे। श्री रहमानी के अनुसार कई दिनों तक दोनों ओर से जबरदस्त लड़ाईयां लड़ी गई। बहता नरहे फूरात से एक कतरा पानी लेने पर रोक का आलम था कि भूखे प्यासे हालत में एक-एक कर हजरत इमाम हुसैन के साथी शहीद होते चले गए। और दसवीं मुहर्रम अर्थात योमे आशूरा को अकेला मर्दे मुजाहिद नवासे रसूल, अली और फातिमा का लख्ते जिगर के तलवार का ऐसा जौहर दिखाया कि यजीदी फौज के छक्के छूटने लगे। यजीदी फौजों में दहशत फैल गई। सामने आने की हिम्मत यजीदी फौजों में नहीं रह गई थी। इसी बीच दिन ढ़लने एवं नमाजे असर के वक्त सिजदे की हालत में मलऊन यजीदी लश्कर के सरदार इब्ने ज्याद ने मौका का फायदा उठाते हुए हजरत इमाम हुसैन को शहीद कर दिया। यजीदी फौज ने शहीद इमाम के कटे सिर को नेजा (भाला) में लगाकर इमाम हुसैन, इमाम हुसैन वो मार डाला के खुशी का नारा लगाते हुए बुगदाद में अपने आका यजीद के सामने हजरत का कटा सिर पेश कर दिया। दुनिया के हर कोने में मुसलमान हजरत इमाम हुसैन के शहादत की याद को ताजा रखते हुए ताजिया दारी, अलम निकाल कर औरत मर्द मर्सिया पढ़ने का काम करते आ रहे हैं। श्री रहमानी बताते हैं कि हालांकि हजरत इमाम हुसैन की शहादत के मौका पर बेहतर तरीका रोजा रखना, सब्र की तल्कीन और कुरआन मजीद की तिलावत पाठ करना चाहिए। इस मौका पर ताजियादारी, अलम बरदारी को इसलाम ने नापसंद ठहराया है। वहीं इस मौका पर जगह-जगह दसवीं आशूरा मुहर्रम के अवसर पर मुस्लिम समुदाय की ओर से ताजिया और अलम निकाल कर शहर और गांवों का चक्कर लगाने की धूम रहती है। इस मौका पर औरतें हजरत इमाम हुसैन की शहादत मर्सिया के माध्यम से गम का इजहार करती है। कत्ले हुसैन असल में मर्गे यजीद है, इसलाम जिंदा होता है हर करबला के बाद।

Previous Post
Next Post

About Author

0 comments: