(पेशावॉर के आतंकी हमले में मासूम बच्चों की मौत पर मेरे जज़्बात ! )
ये कैसी जंग है कायर, के यूं बच्चों को मारा है,
अगर ये जंग है तो जान ले तू जंग हारा है
बता हासिल हुवा क्या मारकर मासूम बच्चों को ?
जो थे जन्नत के फूल उन फूल से मासूम बच्चों को ?
ये बच्चे मुल्क के, माँ-बाप के आँखों के तारे थे,
ये मुस्तक़बिल में मज़लूमों के बूढ़ों के सहारे थे l
मगर इक पल में सब को बेसहारा कर दिया तुम ने,
बड़े बुज़दिल हो मक्कारों इशारा कर दिया तुम ने
पेशावॉर हो या ग़ाज़ा हो, या अफ़्रीक़ा का सेहरा हो,
सभी मुल्कों में तुमने चुन के बस बच्चों को मारा है l
तुम इतने सर फिरे क्यों हो, ये तुमपर किस का साया है?
तुम्हारे कर्म ने इंसानियत का सर झुकाया है l
चलाओ गोलियाँ चाहे करो जाकर कहीं मिन्नत,
किसी की जान लेने से कभी मिलती नहीं जन्नत l
बिलखती माओं के आँसूं नहीं बेकार जायेंगे,
ये आँसू अब हर एक ज़ालिम के घर बिजली गिरायेंगे l
ख़ून के नापाक ये धब्बे, ख़ुदा से कैसे छिपाओगे?
मासूमों कीे क़ब्र पर चढ़कर, कैसे जन्नत जाओग
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