Tuesday, March 17, 2015

हकीम की शायरी

न कह सको कुछ तो आँखें झुका लेना,
हम समझ जायेंगे हमें तुम न कुछ कहना।

हकीम की शायरी

सुनो तो अर्ज करें, मान लो तो क्या कहने,
आये थे एक हम भी जरूरत से तेरे पास।

हकीम की शायरी

हम तो बिक जाते हैं उन मेहरबानियों के आगे,
जो करके एहसान अपनी नज़र नीची रखते हैं।

हकीम की शायरी

खुदा के हाथों में मत सौंप तू सारे काम अपने,
बदलते वक्त पर कुछ अपना भी इख्तियार रख।

हकीम की शायरी

दबा के कब्र में सब चल दिए दुआ न सलाम, ज़रा सी देर में क्या हो गया जमाने को, कभी

हकीम की शायरी

ढ़ूँढ़ेंगे लोग मुझे ज़मीदोज़ हो जाने के बाद
हर दौर के लोगो से जो मै खूब वाकिफ था

हकीम की शायरी

इश्क़ में किसकी हुई जीत किसकी हुई मात
आज की रात छोड़ो भी अब ये सब बात कहा न किसी से तेरे फ़साने को

हकीम की शायरी

शायरी ये हसरत बयाँ करती है मेरी
सुनता हूँ जब भी दिल में उतर जाते है

हकीम की शायरी

हाथो की हिना ने अपना हुनर भी खूब दिखाया,
क़ातिल हाथो को उसने अपने रंगो से छुपाया।

हकीम की शायरी

अब किसे चाहें, किसे ढूँढा करें, 
वो भी आख़िर मिल गया बोलो अब क्या करें।

हकीम की शायरी

सब्र मुश्किल है पर हक़ पे मै चलता हूँ,
बस काम अपना मै ईमानदारी से करता हूँ।

हकीम की शायरी

सुना था तेरी महफिल में सुकून-ए-दिल भी मिलता है, मगर हम जब भी तेरी महफिल से आये, बेकरार आये।

हकीम की शायरी

तेरी खुश्बू फ़ैली है फ़िज़ाओ में कुछ इस तरह,
तेरी मौज़ूदगी का अहसास हवाऐं कराती है।

हकीम की शायरी

बेच आये बाज़ार में खुद को ये क्या कम था,
ज़रूरते अब भी न हो पूरी तो मै क्या करूँ।

हकीम की शायरी

एक चादर को लेकर कशमकश होती रही रात भर,
गर जो तुम मुझसे लिपट जाते तो ये मामला न होता।

हकीम की शायरी

बस आज इतनी ही रोटी मयस्सर हुई मुझे,
देखकर उनके टुकड़े पानी से पेट भरता रहा।

हकीम की शायरी

मैं परेशाँ था, परेशाँ हूँ, ये कोई नयी बात नहीं,
पर आज वो भी है परेशाँ, खुदा खैर करे उन पे।

हकीम की शायरी

ले कर वादा हमसे और भी आफत में डाला आपने,
जिंदिगी मुश्किल थी, अब मरना भी मुश्किल हो गया।

हकीम की शायरी

आये कुछ यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबाँ,
भूले कुछ यूँ कि जैसे कभी आये न थे।

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