और जाया नहीं होता अश्क ग़म-ऐ-जुदाई में मुझसे।
हकीम
हमने जिंदिगी अपनी क़लम से सवाराँ है,
जो दिल पे गुज़री है उसे काग़ज़ों पे उतरा है।
हकीम
तूने न देखी वो रुख़्सार, वो होंट उनके,
हम तो लुट ही गये थे, तुम भी लूट जाते।
हकीम
एक रात मेरे दिल में तेरी खोई याद आई,
जैसे पतझड़ के बाद एक बहार सी आई।
हकीम
कैसे तू सुनती मुझे बड़ा शोर था तेरे अपनों का,
दूर से आती हुई कोई आवाज़ सा हो गया था मैं
हकीम
निवाले दो हमने क्या तेरे हाथो से जो खाये,
अहसान उसके बदले मरते दम तक चुकाये।
हकीम
जब कभी आप दिल को बहलाएंगे,
सिर्फ़ हम ही हम तुम्हें याद आएँगे।
हकीम
तुम लोगो को रुलाने का हुनर ढूँढ़ते हो,
हम दुआओं में उनकी ख़ुशी को ढूँढते हैं।
हकीम
अक्ल वालों के मुकद्दर में ये जुनून कहाँ,
ये तो इश्क वालें हैं जो हर चीज लूटा देते हैं..
हकीम
मंज़िलें जब नज़दीक आने लगीं,
दिल से हसरतें सारी जाने लगीं।
हकीम
मै पेट भर लेता हूँ भूख़ मिटाने के लिए होटलो में,
रूह तभी भर्ती है जब माँ से एक निवाला खाता हूँ।
हकीम
तोड़ती पत्थर और ये हांथो पे पड़े छालें,
बाद कई मुद्दतों के मेरे मुँह को पड़े निवाले।
हकीम
मै आँसू खरीद सकता हूँ, मै हर दर्द खरीद सकता हूँ,
तू बना ले अपना मुझे तो तेरा हर ग़म खरीद सकता हूँ।
हकीम
उड़ान परिंदों की क्यों अब ऊँची होने लगी,
सोच इनकी जो इंसानो से बड़ी होने लगी ।
हकीम
बाद मुद्दत के जो याद किया है तुमने,
ये भी मुझ पे अहसान किया है तुमने।
हकीम
चादर पर पड़ी सिलवटे जैसी है अपनी ज़िंदगानी,
कही दिल दरिया तो कही दरिया दिल है ज़िंदगानी।
हकीम
कुछ इस तरह मैंने अपनी जिंदिगी आसां कर ली,
किसी को माफ़ किया, किसी से माफ़ी मांग ली।
हकीम
लूट लेते थे वही मुझको, राह में मौका पा कर,
जो बातें अक्सर अपनेपन की किया करता था।
हकीम
आया जो ख़्याल उनका आंखें बरस पड़ीं,
आंसू किसी की याद के कितने करीब थे।
हकीम
तुम क्या जानो अंदाज-ए-अकीदत क्या होता है,
सर खुद-ब-खुद झुकता है झुकाया नहीं जाता।
हकीम
वो राहें ज़हन में घूमती हैं जिन राहों से आज आया हूं,
कितनी उम्मीद से पहुंचा था, कितनी मायूसी लाया हूं।
हकीम
उजला के नज़रना ग़मो का जो मै मुत्मइन हुआ,
चारों तरफ से बुझाने उसको हवाऐं चलने लगी।
हकीम
मत मान बुरा ऐ दोस्त बुज़ुर्गो ने कहा है,
ऐसा भी है कोई के सब अच्छा कहें जिसे?
हकीम
रोती है वतन की मिट्टी, बेदर्द रहनुमा निकला,
जम्हूरियत को अपने फैसले पे मलाल बहुत है।
हकीम
रंज-ए-गुफ्तगू जब होने लगी,
आप से तुम, तुम से तू होने लगी।
हकीम
हसरतो को शेर कह दिया जाए,
सुनते ही जो दिलो में उतर जाए।
हकीम
मानिंद-ए-मंज़र हज़ारों क़ाफ़िले गुज़र गये,
नक्श-ए-क़दम ज़मी पे हर किसी का बाकि न रहा।
हकीम
कोई नही आऐगा मेरी जिदंगी मे तुम्हारे सिवा,
एक मौत ही है जिसका मैं वादा नही करता।
हकीम
यूँ ही तड़पेंगे रातों को, यूँ ही जाँ हम खोयेंगे,
खातिर ऐ दर्द-ए-दिल तेरे हम भी नही सोयेंगे।
हकीम
नज़र आये-न-आये कोई आँसू पूँछनेवाला,
मेरे रोने की दाद ऐ बेकसी ! दीवारों-दर देंगे।
हकीम दानिश
hakeemdanish.blogspot.com
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