Friday, October 17, 2014

हदीस भाग 4

हकीम दानिश
हदीसें हदीसें 
चौथा भाग
151. أَدَلُّ شَيء عَلى غَزارَةِ العَقلِ حُسنُ التَدبيرِ;
बुद्धिमान होने की सब से बड़ी दलील, अच्छी तदबीर व उपाय है। 
152. أَفضَلُ النّاسِ رَأياً مَن لا يَستَغنِي عَن رَأي مُشير;
सब से अच्छी राय उस इन्सान की है जो स्वयं को मशवरा देने वाले की राय से मुक्त न समझता हो।
153. أَفضَلُ الجُودِ اِيصالُ الحُقُوقِ إلى اَهلِها
सब से बड़ा दान व सखावत, हकदारों तक उनके हक पहुंचाना है 
154. أَكبَرُ الكُلفَةِ تَعَنُيكَ فِيما لا يَعنيكَ
सब से बड़ा दुख व तकलीफ़, उस चीज़ में मेहनत करना है जिस से तुम्हें कोई फ़ायदा न हो। 
155. أَكبَرُ العَيبِ أن تَعيبَ غَيرَكَ بِما هُوَ فيكَ
सब से बड़ी बुराई, दूसरों की उस बुराई को पकड़ना है जो स्वयं में भी पाई जाती है। 
156. أَخسَرُ النّاسِ مَن قَدَرَ عَلى اَن يَقُولَ الحَقَّ وَلَم يَقُل
सब से अधिक नुक़्सान में वह लोग हैं जो हक़ बात कहने की ताक़त रखते हुए, हक़ बात न कहें।
157. أَبخَلُ النّاسِ مَن بَخِلَ بِالسَّلامِ
सब से अधिक कंजूस वह लोग हैं जो सलाम करने में कंजूसी करें।
158. أَشَدُّ مِنَ المَوتِ طَلَبُ الحاجَةِ مِن غَيرِ أَهلِها
नीच से कोई चीज़ माँगना, मौत से भी अधिक कठिन है। 
159. أَعقَلُ النّاسِ مَن كانَ بِعَيبِهِ بَصيراً وَعَن عَيبِ غَيرِهِ ضَريراً
सब से अधिक बुद्धिमान इन्सान वह है जो अपनी बुराइयों को देखे और दूसरों की बुराइयों को न देखे।
160. أَفضَلُ الأدَبِ أن يَقِفُ الإنسانُ عِندَ حَدِّهِ وَلا يَتَعدَّى قَدرَهُ
सब से अच्छा सदाचार यह है कि इन्सान अपनी हद में रहे और उस से बाहर न निकले।
161. إِنَّ أهنَأَ النّاسِ عَيشاً مَن كانَ بِما قَسَمَ اللهُ لَهُ راضِياً
सब से अच्छा जीवन उसका है जो उस पर प्रसन्न रहे, जो उसे अल्लाह ने दिया है। 
162. اِنَّ مِنَ العِبادَةِ لِينَ الكَلامِ وَإفشاءَ السَّلامِ
नर्मी के साथ बात करना और ऊँची आवाज़ में सलाम करना इबादतों में से है।
163. إِنَّ هذِهِ القُلُوبَ اَوعِيَةٌ فَخَيرُها اَوعاها لِلخَيرِ
यह दिल बर्तन (के समान) हैं और इन में सब से अच्छा बर्तन वह है जिस में नेकियां अधिक आयें।
164. إِنَّ بِشرَ المُؤمِنِ فِي وَجهِهِ، وَقُوَّتَهُ فِي دينِهِ وَحُزنَهُ فِي قَلبِهِ
मोमिन की खुशी उसके चेहरे पर, उसकी ताक़त उसके दीन में और उसका ग़म उसके दिल में होता है।
165. إنَّ هذِهِ القُلُوبَ تَمِلُّ کما تمل الأبدانُ فَابتَغُوا لَها طَرائِفَ الحِكَمِ
दिल, बदन की तरह थक जाते हैं, उन्हें खुश करने के लिये नया ज्ञान व बुद्धिमत्ता तलाश करो।
166. إنَّ أفضَلَ الخَيرِ صَدَقَةُ السِّرِّ وَبِرُّ الوالِدَينِ وَصِلَةُ الرَّحِمِ
सब से अच्छी नेकी छिपा कर सदका देना, माँ बाप के साथ भलाई करना और सिला –ए- रहम (रिश्तेदारों के साथ मेल जोल से रहना) करना है।
167. إنَّ النّاسَ إلى صالِحِ الأدَبِ أحوَجُ مِنهُم إلَى الفِضَّةِ وَالذَّهَبِ; 
लोगों को सदाचार की ज़रुरत, सोने चांदी से अधिक है। 
168. إنَّ حَوائِجَ النّاسِ إلَيكُم نِعمَةً مِنَ اللهِ عَلَيكُم فَاغتَنِمُوها وَلا تَمَلُّوها فَتَتَحَوَّلَ نَقَماً
तुम से लोगों की ज़रुरतों का जुडा होना, तुम्हारे लिए अल्लाह की नेमत है, उसे अच्छा समझो और उस से दुखी न हो वर्ना वह निक़मत में बदल जायेगी। (निक़मत शब्द हर प्रकार की बुराई को सम्मिलित है) 
169. اِن كُنتُم تُحِبُّونَ اللهَ فَأخِرِجُوا مِن قُلُوبِكُم حُبَّ الدُّنيا
अगर तुम अल्लाह से मोहब्बत करते हो तो अपने दिल से दुनिया की मोहब्बत निकाल दो।
170. إن تَنَزَّهُوا عَنِ المَعاصِي يُحبِبكُمُ اللهُ
अगर तुम गुनाहों से पाक हो जाओ तो अल्लाह तुम से मोहब्बत करेगा।
171. إنَّكَ إن أطَعتَ اللهَ نَجّاكَ وأصلَحَ مَثواكَ
अगर तुम अल्लाह की आज्ञा का पालन करो तो वह तुम्हें निजात (मुक्ति) देगा और तुम्हारे ठिकाने को अच्छा बना देगा। 
172. إنَّكَ لَن يُغنِي عَنَكَ بَعدَ المَوتِ إلاّ صالِحُ عَمَل قَدَّمتَهُ فَتَزَوَّد مِن صالِحِ العَمَلِ
मरने के बाद, तुम्हें तुम्हारे उन कार्यों के अलावा कोई चीज़ फायदा नहीं पहुंचायेगी जो तुम ने आगे भेज दिये हैं अतः नेक कामों को तुम अपना तोशा बना लो। (यात्रा के दौरान काम आने वाली हर चीज़ को तोशा कहते हैं, यहाँ पर इस बात की ओर इशारा किया गया है कि परेलोक की यात्रा के लिए अच्छे कार्यों को इकठ्ठा करो ताकि वह इस यात्रा में तुम्हारे काम आयें।)
173. اِنَّمَا العاقِلُ مَن وَعَظَتَهُ التَّجارِبُ
बुद्धिमान वह है जो अपने तजुर्बों से शिक्षा ले।
174. إنَّما سُمِّيَ العَدُوُّ عَدُوّاً لاَِنَّهُ يَعدُو عَلَيكَ فَمَن داهَنَكَ فِي مَعايِبِكَ فَهُوَ العَدُوُّ العادي عَلَيَكَ
दुश्मन को दुश्मन इस लिये कहा जाता है, क्योंकि वह तुम्हारे ऊपर अत्याचार करता है, अतः जो तुम्हें तुम्हारी बुराइयाँ बाताने से बचे, वह तुम्हारा दुश्मन है क्योंकि उसने तुम पर अत्याचार किया है।
175. إنَّما زُهدَ النّاسِ في طَلَبِ العِلمِ كَثرَةُ ما يَرَونَ مِن قِلَّةِ مَن عَمِلَ بِما عَلِمَ
जिस चीज़ ने इंसानों को ज्ञान प्राप्ति से रोका है, वह यह है कि बहुतसे देखते हैं कि अपने अपने इल्म पर अमल करने वाले अर्थात अपने ज्ञान पर क्रियान्वित होने वाले कम हैं।
176. إنَّما قَلبُ الحَدَثِ كَالأرضِ الخالِيَةِ مَهما أُلقِيَ فيها مِن كُلِّ شَيء قَبِلَتهُ;
नौजवान का दिल उस ज़मीन के समान है जिस में अभी खेती न की गई हो अतः उस में जो कुछ डाला जायेगा वह उसे ही स्वीकार कर लेगा। 
177. إذا صَنَعتَ مَعرُوفاً فَاستُرهُ
जब कोई नेकी करो तो उसे छिपा लो।
178. إذا صُنِعَ اِلَيكَ مَعرُوفٌ فَاذكُر
जब तुम से कोई भलाई करे तो उसे याद रखो।
179. إذا تَمَّ العَقلُ نَقَصَ الكَلامُ
जब बुद्धी पूर्ण हो जाती है तो बातें कम हो जाती हैं। 
180. إذا أَضَرَّتِ النَّوافِلُ بِالفَرائِضِ فَارفُضُوها
जब मुस्तहब चीज़ें, वाजिब चीज़ों को नुक्सान पहुंचाने लगें तो उन्हें छोड़ दो।
181. إذا ظَهَرَتِ الجِناياتُ ارتَفَعَتِ البَرَكاتُ; 
जब बुरे काम व गुनाह खुले आम होने लगते हैं तो बरकत ख़त्म हो जाती है। 
182. إذا رَأيتَ عالِماً فَكُن لَهُ خادِماً
जब आलिम को देखो तो उसकी सेवा करो। 
183. إذا قامَ أحَدُكُم إِلَى الصَّلاةِ فَليُصَلِّ صَلاةَ مُوَدِّع
जब तुम में से कोई नमाज़ के लिये खड़ा हो तो इस तरह नमाज़ पढ़े जैसे वह उसकी आखरी नमाज़ है।
184. إذا أبصَرَتِ العَينُ الشَّهوَة عَمِيَ القَلبُ عَنِ العاقِبَةِ; 
जब आँख हवस की तरफ़ देखती है तो दिल उसके नतीजे को देखने से अंधा हो जाता हैं। 
185. إذا رَاَيتَ مَظُلوماً فَاَعِنهُ عَلَى الظّالِمِ; 
जब किसी मज़लूम को देखो तो ज़ालिम के मुक़ाबले में उसकी मदद करो।
186. اِذا رَغِبتَ فِي المَكارِمِ فَاجتَنِبِ المَحارِمَ
अगर बुज़ुर्गी व सम्मान चाहतें हो तो हराम काम से दूर हो जाओ।
187. إذا أكرَمَ اللهُ عَبداً شَغَلَهُ بِمَحَبَّتِهِ
जब अल्लाह किसी बन्दे का आदर करता है तो उसे अपनी मोहब्बत में व्यस्त कर देता है। 
188. إذا عَلَوتَ فَلا تُفَكِّر فِيمَن دُونَكَ مِنَ الجُهّالِ ولكِنِ اقتَدِ بِمَن فَوقَكَ مِنَ العُلَماءِ
जब किसी उच्चता पर पहुंचो तो अपने से नीचे के जाहिलों के बारे में न सोचो, बल्कि अपने से ऊपर वाले आलिमों का अनुसरण करो।
189. إذا رَأيتَ في غَيرِكَ خُلقاً ذَمياً فَتَجَنَّب مِن نَفسِكَ اَمثالَهُ
जब तुम किसी में कोई अख़लाकी बुराई देखो तो स्वयं को उस जैसी बुराईयों से दूर रखो।
190. إذا أرادَ اللهُ بِعَبد خَيراً ألهَمَهُ القَناعَةُ وأصَلَحَ لَه زَوجَهُ
जब अल्लाह किसी बन्दे की भलाई चाहता है तो उसके दिल में क़िनाअत (कम को अधिक समझना) डाल देता है और उसकी बीवी को नेक बना देता है।
191. إذا أرادَ اللهُ سُبحانَهُ صَلاحَ عَبد ألهَمَهُ قِلَّةَ الكَلامِ وَقِلَّةَ الطَّعامِ وَقِلَّةَ المَنامِ
जब अल्लाह किसी बन्दे का सुधार व भलाई चाहता है तो उसके दिल में कम बोलने, कम खाने, कम सोने की बात डाल देता है।
192. اِذا هَمَمتَ بِآمر فَاجتَنِب ذَميمَ العَواقِبِ فِيهِ
जब किसी काम का इरादा करो तो उसके बुरे नतीजे से बचो। 
193. إذا سَأَلتَ فَاسأل تَفَقُّهاً وَلا تَسأَل تَعَنُّتاً
जब कोई सवाल पूछो तो समझने व जानने के लिये पूछो, दूसरों का इम्तेहान लेने के लिये नहीं।
194. إذا كَتَبتَ كِتاباً فَأَعِد فيهِ النَّظَرَ قَبلَ خَتمِهِ فَإنَّما تَختِمُ عَلى عَقِلِكَ
जब तुम कोई चीज़ लिखो तो उस पर मोहर लगाने से पहले उसे एक बार फिर पढ़ कर देख लो क्योंकि तुम अपनी बुद्धी पर मोहर लगा रहे हो।
195. إذا رَغِبتَ في صَلاحِ نَفسِكَ فَعَلَيكَ بِالاِقتِصادِ وَالقُنُوعِ وَالتَّقَلُّلِ; 
अगर स्वयं को सुधारना चाहते हो तो मयानारवी (न कम न अधिक) से खर्च करो, जो मिले उस पर खुश रहो और इच्छाओं को कम कर दो।
196. بِحُسنِ العِشرَةِ تَدوُمُ المَوَدَّةُ; 
अच्छे व्यवहार से मोहब्ब्त मज़बूत होती है।
197. بِالعَدلِ تَتَضاعَفُ البَرَكاتُ; 
इन्साफ से बरकतें दोगुनी हो जाती हैं।
198. بِالدُّعاءِ يُستَدفَعُ البَلاءُ; 
दुआ से, विपत्तियाँ दूर होती हैं।
199. بِحُسنِ الاَخلاقِ يَطيبُ العَيشُ;
अच्छे अखलाक से जीवन आनंन्दायक बनता है। 
200.بِصِحَّةِ المِزاجِ تُوجَدُ لَذَّةُ الطَّعمِ; 
स्वास्थ सही होता है जो खाने के मज़े का एहसास होता है। 
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