Friday, October 17, 2014

हदीस भाग २

हकीम दानिश
हदीसें हदीसें 
दूसरा भाग
51. ;اَلفِكرُ فِي الخَيرِ يَدعُو إلَى العَمَلِ بِهِ
नेकी के बारे में सोचना, (आदमी को) नेकी करने का निमन्त्रण देता है।
52. ;اَلتَّدبِيرُ قَبلَ العَمَلِ يُؤمِنُ النَّدَمَ
काम से पहले सोच विचार करना, लज्जा से बचाता है।
53.اَلتَّقريعُ اَشَدُّ مِن مَضَضِ الضَّربِ
निंदा झेलना, मार पीट के दर्द से भी बुरा है।
54.اَلمُؤمِنُ هَيِّنٌ لَيِّنٌ سَهلٌ مُؤتَمَنٌ
मोमिन, सरल स्वभावी, विनम्र, आसानी से काम लेने वाला और भरोसेमंद होता है।
55. ;اَلمُؤمِنُ سِيرَتُهُ القَصدُ وَسُنَّتُهُ الرُّشدُ 
मोमिन की जीवन शैली, समस्त कामों में बीच का रास्ता अपनाना और उसकी सुन्नत विकास करना है।
56. اَلبِشرُ اِسداءُ الصَّنيعَةِ بغیر مَؤُونَةِ; 
प्रफुलता, बगैर खर्च की नेकी है।
57. اَلطُّمَأنينَةُ قَبلَ الخُبرَةِ خِلافُ الحَزمِ
परीक्षा किये बिना, किसी पर भरोसा करना दूर दर्शिता के ख़िलाफ है।
58. اَلإحسانُ اِلَى المُسيءِ يَستَصلِحُ العَدُوَّ; 
बुरे के साथ भलाई करना, दुश्मन का सुधार करना है।
59. اَلحَياءُ مِنَ اللهِ يَمحوُ كثيراً مِنَ الخَطايا; 
अल्लाह से शर्माना, बहुत से गुनाहों को मिटा देता है।
60. اَلصِّدقُ مُطابَقَةُ المَنطِقِ لِلوَضعِ الإلهِيِّ; 
सच बोलना, उस बात के अनुसार है जो अल्लाह ने (प्रत्येक व्यक्ति के अस्तित्व में) रखी है।
61. اَلمُرائي ظاهِرُهُ جَميلٌ وَباطِنُهُ عَليلٌ
पाखंड़ी (दिखावा करने वाले) का बाह्य रूप अच्छा और आन्तरिक रूप बुरा होता है। 
62. اَلمَطَلُ وَالمَنُّ مُنَكِّدَ الإحسانِ
एहसान जताना, नेकी की महत्ता को कम कर देता है। 
63. اَلدُّعاءُ لِلسّائِلِ إحدَى الصَّدَقَتَينِ
ज़रुरतमंद के लिये दुआ करना, दो सदकों में से एक है। 
64. اَلإنصافُ يَرفَعُ الخِلافَ وَيُوجِبُ الاِئتِلافَ
इंसाफ लड़ाई झगड़ों को खत्म कर देता है और मोहब्बत बढ़ाता है। 
65. اَلصَّبرُ عَلى طاعَةِ اللهِ أهوَنُ مِنَ الصَّبرِ عَلى عُقُوبَتِهِ
अल्लाह की आज्ञा पालन पर सब्र करना, उसकी सज़ा पर सब्र करने से आसान है। 
66. اَلعالِمُ مَن لا يَشبَعُ مِنَ العِلمِ وَلا يَتَشَبَعُ بِهِ
ज्ञानी कभी ज्ञान से तृप्त नही होता और न ही अपनी तृप्तता को प्रकट करता। 
67. اَلكَمالُ فِي ثَلاث: اَلصَبرُ عَلَى النَّوائِبِ وَالتَوَرُّعُ فِي المَطالِبِ وَإسعافُ الطّالِبِ
(इन्सान का) कमाल तीन चीज़ों में है, परेशानियों पर सब्र करना, इच्छाओं के होते हुए पारसा बने रहना, और माँगने वाले की आवश्यक्ता को पूरा करना। 
68. اَلعارِفُ مَن عَرَفَ نَفسَهُ فَأَعتَقَها وَنَزَّهَها عَن كُلِّ ما يُبَعِّدُها وَيُوبِقُها
आरिफ (ब्रह्मज्ञानी) वह है जो स्वयं को पहचाने और स्वयं को हर उस चीज़ से बचाये रखे जो उसे सही रास्ते से दूर करे और विनाश की ओर ले जाए। 
69. اَلإخوانُ فِي اللهِ تَعالى تَدُومُ مَوَدَّتُهُم لِدَوامِ سَبَبِها
जो किसी को अल्लाह के लिए भाई बनाता है उसकी मोहब्बत स्थाई हो जाती है, क्यों कि दोस्ती व भाई चारे का कारण अमर है। 
70. اَلكُيِّسُ مَن كانَ يَومُهُ خَيراً مِن أمسِهِ وَعَقَلَ الذَّمَّ عَن نَفسِهِ; 
चतुर वह है, जिस का आज, बीते हुए कल से अच्छा हो और जो स्वयं को बुराइयों से रोक ले।
71. اَلتَّقَرُّبُ إلَى اللهِ تَعالى بِمَسأَلَتِهِ وَإِلَى النّاسِ بِتَركِها 
अल्लाह का समीपयः उस से कुछ माँगने पर प्राप्त होता है और इंसानों का समीपयः उनसे कुछ न माँगने पर।
72. إخوانُ الصِّدقِ زِينَة ٌفی السراء وعدۃ فی الضراء; 
सच्चा भाई खुशी में शोभा होता है और दुख दर्द में (सहायता के लिए हर तरह से) तैयार रहता है।
73. اَلمُرُؤَةُ اجتِنابُ الرَّجُلِ ما يَشينُهُ وَاكتِسابُهُ ما يَزينُهُ; 
मर्दानंगी इसमें है कि मर्द उन चीज़ों से दूर रहे जो उसे बुरा बनायें और उन चीज़ों को अपनाये जो उसे शौभनीय बनायें।
74. اَلحاسِدُ يَرى أنَّ زَوالَ النِّعمَةِ عَمَّن يَحسُدُهُ نِعمَةٌ عَلَيهِ; 
ईर्ष्यालु जिस से ईर्ष्या करता है, उसकी नेमतों के विनाश को अपने लिये नेमत (धन दौलत) समझता है।
75. اَلعامِلُ بِجَهل كَالسَّائِرِ عَلى غَيرِ طَريق فَلا يَزيدُهُ جِدُّهُ فِي السَّيرِ إلاّ بُعداً عَن حاجَتِهِ
अज्ञानता के साथ किसी काम को करने वाला, ग़लत रास्ते पर चलने वाले की तरह है, उसकी आगे बढ़ने की कोशिश से गंतव्य से दूर होने के अलावा उसे कोई फायदा नहीं होता। 
76. الذُّنُوبُ الدّاءُ وَالدَّواءُ الاِستِغفارُ وَالشَّفاءُ أن لا تَعُودَ
गुनाह, दर्द है और उसकी दवा इस्तगफार (अल्लाह से क्षमा याचना करना) है और उसका इलाज उसे न दोहराना है। 
77. اَلصَّبرُ صَبرانِ: صَبرٌ عَلى ما تَكَرَهُ وَصَبرٌ عَمّا تُحِبُّ
सब्र दो तरह के हैं : एक वह सब्र जो उन चीज़ों पर करते हों जिन्हें अच्छा नहीं समझते हो और दूसरा वह सब्र जो उन चीज़ों पर करते हों जो तुम्हें अच्छी लगती हो। 
78. إكمالُ المَعرُوفِ أحسَنُ مِنِ ابتِدائِهِ
नेकियों को पूरा करना, उनको शुरु करने से भी अच्छा है। 
79. اَلصَّديقُ الصَّدوُقُ مَن نَصَحَكَ فِي عَيبِكَ وَحَفِظَكَ فِي غَيبِكَ وَآثَرَكَ عَلى نَفسِهِ
तुम्हारा सच्चा दोस्त वह है जो तुम्हें तुम्हारी बुराइयों के बारे में नसीहत करे, तुम्हारे पीछे तुम्हारी रक्षा करे और तुम्हें अपने ऊपर वरीयता दे। 
80. اَلحَزمُ النَّظَرُ فِي العَواقِبِ ومُشاوَرَةُ ذَوِي العُقُولِ
दूर दर्शिता, (किसी काम के) परिणामों पर ग़ौर करना और बुद्धिमान लोगों से परामर्श करने का नाम है। 
81. اَلدَّهرُ يَومانِ: يَومٌ لَكَ وَيَومٌ عَلَيكَ فَإذا كانَ لَكَ فَلا تَبطَر وَإذا كانَ عَلَيكَ فَاصطَبِر
दुनिया दो दिन की है, एक दिन तुम्हारे पक्ष में और दूसरा तुम्हारे विरुद्ध है, जब तुम्हारे पक्ष में हो तो उपद्रव न करो और जब तुम्हारे विरुद्ध हो तो सब्र से काम लो। 
82. اَلعِلمُ خَيرٌ مِنَ المالِ، اَلعِلمُ يَحرُسُكَ وَأنتَ تَحرُسُ المالَ
ज्ञान, माल से अच्छा है, क्यों कि ज्ञान तुम्हारी रक्षा करता है और माल की तुम रक्षा करते हो। 
83. اَلتَّثَبُّتُ خَيرٌ مِنَ العَجَلَةِ إلاّ فِي فُرَصِ البِرِّ
सुअवसर के अतिरिक्त (कार्यों में) देर करना, जल्दी करने से अच्छा है, 
84. اَلجُنُودُ عِزُّ الدِّينِ وَحُصُونُ الوُلاةِ
फौज, दीन के लिए इज़्ज़त और शासकों के लिए किला है। 
85. اَلأمرُ بِالمَعروفِ أفضَلُ أعمالِ الخَلقِ
अम्र बिल मअरुफ (इंसानों को अच्छे काम करने की सलाह देना), लोगों का सब से अच्छा काम है। 
86. اَلطُّمَأنِينَةُ اِلى كُلِّ أحَد قَبلَ الاِختِبارِ مِن قُصُورِ العَقلِ
परीक्षा करने से पहले, हर एक पर भरोसा करना कम बुद्धी की निशानी है। 
87. اَلبُكاءُ مِن خَشَيَةِ اللهِ يُنيرُ القَلبَ وَيَعصِمُ مِن مُعاوَدَةِ الذَّنبِ
अल्लाह से डर कर रोना, दिल को प्रकाशित करता है और गुनाह की पुनरावर्त्ति से रोकता है। 
88. اَلحِدَّةُ ضَربٌ مِنَ الجُنُونِ لأَنَّ صاحِبَها يَندَمُ فَإن لَمِ يَندَم فَجُنونُهُ مُستَحكَمٌ
क्रूरता, एक तरह का पागलपन है, क्योंकि ऐसा करने वाला लज्जित होता है और अगर वह लज्जित न हो तो उसका पागल पन पक्का है। 
89. اَلأيّامُ صَحائِفُ آجالِكُم، فَخَلِّدُوها أحسَنَ أعمالِكُم
हर दिन तुम्हारी उम्र का रजिस्टर है अतः उन्हें अपने अच्छे कामों से अमर बनाओ। 
90. اَلتَّيَقُّظُ فِي الدِّينِ نِعمَةٌ عَلى مَن رُزِقَهُ
धार्मिक जागरूकता, एक ऐसी नेमत है जो नसीब से मिलती है। 
91. اَلمُتَعَبِّدُ بِغَيِر عِلم كَحِمار الطّاحُونَةِ، يَدُورُ وَلا يَبرَحُ مِن مَكانِهِ
ज्ञान के बिना इबादत करने वाला, उस चक्की चलाने वाले गधे के समान है जो घूमता रहता है लेकिन अपनी जगह से बाहर नहीं निकलता। 
92. اَلكَريمُ مَن صانَ عِرضَهُ بِمالِهِ وَاللَّئيمُ مَن صانَ مالَهُ بِعِرضِهِ
करीम (महान) वह है जो अपनी इज़्ज़त को माल से बचाता है और नीच वह है जो इज़्ज़त खो कर माल बचाता है। 
93. اَلصَّلاةُ حِصنُ مِن سَطَواتِ الشَّيطانِ
नमाज़ शैतान के हमलों (से बचने के लिए) किला है। 
94. اِنسَ رِفدَكَ اُذكُر وَعدَك
दी हुई चीज़ों को भूल जाओं और अपने वादों को याद करो। 
95. أعِن أخاكَ عَلى هِدايَتِهِ
(नेकी के) मार्गदर्शन में अपने भाई की मदद करो। 
96. أحسِن إلى مَن أساءَ إِلَيكَ وَاعفُ عَمَّن جَنى عَلَيكَ
जिसने तुम्हारे साथ बुराई की उसके साथ भलाई करो और जिसने तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार किया उसे क्षमा कर दो।
97. أصلِحِ المُسيءَ بِحُسنِ فِعالِكَ وَدُلَّ عَلَى الخَيرِ بِجَميلِ مَقالِكَ
बुरे इन्सान को अपने अच्छे व्यवहार से सुधारो और अपनी अच्छी बातों के द्वारा उसका नेकी की ओर मार्गदर्शन करो। 
98. اِحفَظ أمرَكَ وَلا تُنكِح خاطِباً سِرَّكَ
अपने कार्यों को छुपाओ और अपने राज़ों को हर चाहने वाले की दुल्हन न बनाओ। अर्थात हर किसी से अपने रहस्यों का वर्णन न करो। 
99. اِرضَ لِلنّاسِ بِما تَرضاهُ لِنَفسِكَ تَكُن مُسلِماً
जो अपने लिये पसन्द करते हो, वही दूसरों के लिये भी पसंद करो, ताकि मुसलमान रहो। 
100. اِرضَ مِنَ الرِّزقِ بِما قُسِمَ لَكَ تَعِش غَنِيّاً;
जो धन तुम्हारे हिस्से में आया है उस पर खुश रहो (और) मालदारी में जीवन व्यतीत करो। 
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