हकीम दानिश चुममी वाले
∗ पेड़ पौंधो में जीवन होने के प्रमाण १४०० साल पहले से ही कुरान में …
ईश्वर द्वारा रची गई इस अद्भुत सृष्टि मे एक अद्भुत रचना है, वनस्पति जगत ….
पेड़ पौधों को हम अपनी आंखो से जीवित प्राणियों की तरह छोटे से बड़ा होते, बढ़ते बनते देखते हैं …. पेड़ों को खुद हम अपने हाथ से भोजन खिलाते और पानी पिलाते हैं यानी उन्हें खाद और पानी देते हैं ….
एक और लक्षण होता है प्राणियों मे जीवन का और वो है उनकी बुद्धि … ये बुद्धि हम प्रत्यक्ष से पशुओं मे देखते हैं .. लेकिन यदि ध्यान दिया जाए तो इन पशुओं से भी कहीं अधिक बुद्धि अनेकों पेड़ पौधों मे भी प्रत्यक्ष रूप से दिखती है …
छोटे कीटो से लेकर चूहे और छिपकलियों तक को मूर्ख बनाकर उनका शिकार कर लेने वाले कीटभक्षी और मांसभक्षी पौधों के बारे मे भी आपने पढ़ा होगा और सम्भवत: टीवी पर देखा भी होगा … और बड़े बड़े जानवरों को मूर्ख बना देने वाला पौधा तो अक्सर हमारे घरों मे ही मौजूद होता है …. छुईमुई का पौधा गाय, भैंस और बकरी जैसे जानवरों को मूर्ख बना देता है इन पशुओं के सून्घते ही ये पौधा अपनी पत्तियों को सिकोड़ लेता है जानवर समझते हैं ये पौधा सूखा है और इसमें खाने को कुछ नही और आगे बढ़ जाते हैं … बताईए किसमे ज्यादा बुद्धि है… इस पौधे मे या उन जानवरों मे ???
पेड़ों मे जीवित प्राणियों वाले ये सारे खुले खुले लक्षण देखकर भी कोई उन्हे निर्जीव समझे… तो दोष उस व्यक्ति की बुद्धि का है , पेड़ स्पष्ट तौर पर सजीव होते हैं ।
और जो चीज स्पष्ट तौर पर नहीं दिखती थी वह भी 1400 वर्ष पहले पवित्र कुरान मे बता दी गई कि पेड़ वंश बढ़ाने के लिए आपस मे यौन क्रिया करते हैं ….
कुरान की सूरह ताहा की आयत नम्बर 53 मे लिखा है कि अल्लाह ने पेड़ पौधों को उनके “अज़वाज” अर्थात् विपरीत लिंगी साथियों के साथ बनाया यानि नर एवं मादा पेड़ बनाए
सभी जानते हैं कि वंश बढ़ाना जीवन और जीवित प्राणियों का ही लक्षण है … लेकिन पेड़ भी नर एवं मादा होते हैं और उनका वंश भी यौन क्रिया द्वारा ही वे आगे बढ़ाते हैं ये बात आधुनिक विज्ञान को अट्ठारहवीं शताब्दी मे पता चली…. जबकि पवित्र कुरान मे इस बात का जिक्र आज से चौदह सौ साल पहले ही कर दिया गया था
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