अब मेरा उन सब से सवाल जो हर वक्त शिर्क शिर्क बिदअत बिदअत चिल्लाते है की मुसलमान मज़ारात पे सजदा करते है जो की गैरुल्लाह है जबकि सजदा सिर्फ अल्लाह ही के लिए है अब ये बताओ की कोंन नहीं जानता की सजदा सिर्फ अल्लाह के लिए ही है जहा तक में समझता हु वो सबसे बड़ा जाहिल होगा जो ये कहे की अल्लाह के अलावा भी किसी को सजदा कर सकते है अब आता हु मुद्दे पे हा तो मेने पहले पोस्ट किया की एक शख्श मस्जिद गया उसने वो सब कुछ किया जो नमाज़ में करते है बाकायदा उसने नमाज़ अदा की पर उसने ना ही नमाज़ की नियत की ना ही कुछ पड़ा जो नमाज़ में पड़ते है और ना ही उसका अक़ीदा ये था की में नमाज़ पड़ रहा हु और जब मेने जवाब मांगा की उसकी नमाज़ हुई या नहीं तो ज़्यादातर जवाब यही मिला की उसकी नमाज़ नहीं हुई। वो शख्श ने हाथ नाफ़ पे बांधे रूकू किया सजदा किया वो भी अल्लाह की बारगाह में लेकिन फिर भी उसका ना सजदा हुआ ना ही रूकू हुआ ना ही नमाज़ हुई अब मुझे ये बताओ की एक शख्श किसी वलीअल्लाह की मज़ार पर गया ज़ियारत की उसके बाद उस शख्श ने वलिअल्लाह की मज़ार पर झुक कर बोसा ( चूमा ) दिया उसका अक़ीदा क्या था में अपने बुज़ुर्ग का अदब कर रहा हु और चूम रहा हु और हा न ही उसके झुकने से जिस्म के सातो हिस्से ज़मीन पे लगे जो की सज़दे में ज़रूरी है ना ही उस ने ( सुब्हाना रब्बि यल आला )पढ़ा न ही उसने सजदे की नियत की तो अब ये बताओ की क्या आप की नज़र में इसे सज़दा कहा जायेगा मुझे किसी एक शख्श का नाम बता दो जी की नमाज़ में इस तरिके से सज़दा करता हो और अगर सजदा ऐसे ही होता है तो किसी बड़े आलिम से लिखवा के दे दो फिर में भी नमाज़ में ऐसे ही सज़दा किया करूँगा इससे मेरा ही फायदा होगा ना ही कुछ पढ़ना पड़ेगा ना ही नियत और ना ही सज़दे का अक़ीदा करना पड़ेगा की में अल्लाह के सामने सज़दा कर रहा हु और अगर फिर भी किसी मज़ार पर कोई शख्श ऐसे सज़दा कर रहा है की सुब्हाना रब्बी यल आला भी पड़ रहा है अक़ीदा भी है की में गैरुल्लाह के सामने सज़दा कर रहा हु तो वो शख़्स सबसे बड़ा जाहिल है बद अक़्ल है और अगर फिर भी आप समझते हो की वो सजदा ही है तो आज के बाद अपने छोटे बच्चे का माथा हाथ या मुँह कभी भी मत चूमना क्योंकि उसमे भी झुकना ही पड़ता है ना ही बीबी का न ही किसी और चीज़ को शायद मेरी पोस्ट का मतलब समझ आ ही गया होगा में बास इतना ही कहना चाहता हु की अब ये फतवे ना दिए जाये तो बेहतर है और हा काफी लोगो से सुन चूका हु की मज़ार को धो कर उसका पानी लोग बोतलों में भरते है और पीते है जहा तक में समझता हु ऐसा कुछ नहीं है कोई भी इतना बड़ा जाहिल नहीं है की ऐसा करे क्योंकि मज़ार या कोई भी चीज़ अगर कोई धोता है तो उसमे से धूल मिटटी और भी काफी कुछ पानी में मिल जाता है जो की शारीर में फ़ायदा की जगह नुक्सान ही करता है और अगर कही ऐसा होता है तो और जो ऐसा करते है वो सबसे बड़े जाहिल लोग है में हकीम दानिश ऐसा कुछ नहीं करता हु और ना ही हमारे यहाँ ऐसा कुछ होता है की मजारो को धो कर उसका पानी पिया जाए
हकीम दानिश
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