Sunday, March 29, 2015

अब मेरा उन सब से सवाल जो बिदअत बिदअत के फतवे देते है

अब मेरा उन सब से सवाल जो हर वक्त शिर्क शिर्क बिदअत बिदअत चिल्लाते है की मुसलमान मज़ारात पे सजदा करते है जो की गैरुल्लाह है जबकि सजदा सिर्फ अल्लाह ही के लिए है अब ये बताओ की कोंन नहीं जानता की सजदा सिर्फ अल्लाह के लिए ही है जहा तक में समझता हु वो सबसे बड़ा जाहिल होगा जो ये कहे की अल्लाह के अलावा भी किसी को सजदा कर सकते है अब आता हु मुद्दे पे हा तो मेने पहले पोस्ट किया की एक शख्श मस्जिद गया उसने वो सब कुछ किया जो नमाज़ में करते है बाकायदा उसने नमाज़ अदा की पर उसने ना ही नमाज़ की नियत की ना ही कुछ पड़ा जो नमाज़ में  पड़ते है और ना ही उसका अक़ीदा ये था की में नमाज़ पड़ रहा हु और जब मेने जवाब मांगा की उसकी नमाज़ हुई या नहीं तो ज़्यादातर जवाब यही मिला की उसकी नमाज़ नहीं हुई।  वो शख्श ने हाथ नाफ़ पे बांधे रूकू किया सजदा किया वो भी अल्लाह की बारगाह में लेकिन फिर भी उसका ना सजदा हुआ ना ही रूकू हुआ ना ही नमाज़ हुई अब मुझे ये बताओ की एक शख्श किसी वलीअल्लाह की मज़ार पर गया ज़ियारत की  उसके बाद उस शख्श ने वलिअल्लाह की मज़ार पर झुक कर बोसा ( चूमा ) दिया उसका अक़ीदा क्या था में अपने बुज़ुर्ग का अदब कर रहा हु और चूम रहा हु और हा न ही उसके झुकने से जिस्म के सातो हिस्से ज़मीन पे लगे जो की सज़दे में ज़रूरी है ना ही उस ने ( सुब्हाना रब्बि यल आला )पढ़ा न ही उसने सजदे की नियत की तो अब ये बताओ की क्या आप की नज़र में इसे सज़दा कहा जायेगा मुझे किसी एक शख्श का नाम बता दो जी की नमाज़ में इस तरिके से सज़दा करता हो और अगर सजदा ऐसे ही होता है तो किसी बड़े आलिम से लिखवा के दे दो फिर में भी नमाज़ में ऐसे ही सज़दा किया करूँगा इससे मेरा ही फायदा होगा ना ही कुछ पढ़ना पड़ेगा ना ही नियत और ना ही सज़दे का अक़ीदा करना पड़ेगा की में अल्लाह के सामने सज़दा कर रहा हु और अगर फिर भी किसी मज़ार पर कोई शख्श ऐसे सज़दा कर रहा है की सुब्हाना रब्बी यल आला भी पड़ रहा है अक़ीदा भी है की में गैरुल्लाह के सामने सज़दा कर रहा हु तो वो शख़्स सबसे बड़ा जाहिल है बद अक़्ल है और अगर फिर भी आप समझते हो की वो सजदा ही है तो आज के बाद अपने छोटे बच्चे का माथा हाथ या मुँह कभी भी मत चूमना क्योंकि उसमे भी झुकना ही पड़ता है ना ही बीबी का न ही किसी और चीज़ को शायद मेरी पोस्ट का मतलब समझ आ ही गया होगा में बास इतना ही कहना चाहता हु की अब ये फतवे ना दिए जाये तो बेहतर है और हा काफी लोगो से सुन चूका हु की मज़ार को धो कर उसका पानी लोग बोतलों में भरते है और पीते है जहा तक में समझता हु ऐसा कुछ नहीं है कोई भी इतना बड़ा जाहिल नहीं है की ऐसा करे क्योंकि मज़ार या कोई भी चीज़ अगर कोई धोता है तो उसमे से धूल मिटटी और भी काफी कुछ पानी में मिल जाता है जो की शारीर में फ़ायदा की जगह नुक्सान ही करता है और अगर कही ऐसा होता है तो और जो ऐसा करते है वो सबसे बड़े जाहिल लोग है में हकीम दानिश ऐसा कुछ नहीं करता हु और ना ही हमारे यहाँ ऐसा कुछ होता है की मजारो को धो कर उसका पानी पिया जाए

हकीम दानिश

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