Tuesday, May 5, 2015

शायर सरनवाज़ मीर्ज़ा के चंद अशआर

अश्क आखों में हैं और मोतीयां हथेली पर
बडा ही मुशकिल मरहला है , सूलझा दो ना !

वो पूछते हैं उल्फत का तुमसे क्या हासिल
तूमहें भी प्यार है हम से जरा, बता दो ना !

मै एक चराग हूँ कब तक मूझे निहारोगे
अज़ान सुब्ह की होगी मूझे, बूझा दो ना !

तू तो इनसाॅ नहीं फिर मतलबी से क्या मतलब
पहेली खूब थी फिर से मूझे, समझा दो ना !

मै जी उठा था मरकर ,और तबीब हैराॅ थे
उठा के हाथ उसी तरह से, फिर दूआ दो ना !
सरनवाज़ मिर्ज़ा

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