Friday, July 24, 2015

शोशल मिडिया का एक सच। जो अक्सर लोगो के सामने आता है।

आज का पोस्ट एक ऐसे मुद्दे पर है। जो अक्सर लोगो के सामने आता है। तो आइये सुनिये वो मुद्दा
क्या है। मुद्दा है। एक इंसान का दूसरे इंसान पे यक़ीन करना।
सबसे पहले एक कहानी सुनिए। आप वही पहुच जायेंगे जहा पहुचाना चाहता हु।
सुनिए एक गांव में एक राज मिस्त्री था। उसी गांव में एक और आदमी भी था। जो बिलकुल नकारा था। वो किसी की भी बात पे यकीन नही करता था। चाहे कोई कुछ भी कहे उसे यकीन नही आता था। वो बस दिन भर गांव में बैठा रहता था और सुबह शाम काम पर से आने वालो को देखकर। बेकार की बाते करता था। एक बार वो राज मिस्त्री उस नकारा आदमी को शहर ले गया। और उसे एक 20 मंज़िल की ईमारत दिखाई। उस के अंदर ले गया। कुछ सामान रह गया था वो लेने गया था वापसी में वो राज मिस्त्री ने कहा वो ईमारत कैसी लगी। उसने कहा बहुत अच्छी एक दम लाजवाब राज मिस्त्री बोला ये मैंने बनायीं है। पहले तो उस नकारा ने काफी देर उस मिस्त्री का मुह देखा फिर उस से बोला अबे अपनी शक्ल देखी है आईने में तू और इतनी खूबसूरत ईमारत बनाये। तेरे वस की नहीं है। ज्यादा लंबी लंबी न छोड़। मिस्त्री उसे जब भी शहर ले कर जाता और हर वार नयी नयी इमारते दिखाता और कहता ये मैने बनायीं है। ये मैंने बनाई है। पर उसे कभी यकीन न आया। तो फिर उस मिस्त्री ने कहा चल अबकी बार जब बनाऊंगा तो तू मेरे साथ रहना फिर देखना। उस ने कहा ठीक है। कुछ दिन बाद मिस्त्री को एक और ईमारत बनाने का काम मिला। अब मिस्त्री उस नकारा को साथ ले जाने लगा एक दो मंज़िल तैयार करने के बाद इस नकारा की तबियत खराब हो गयी जिस्की वजह से वो मिस्त्री के साथ नहीं आ सका पर मिस्त्री को तो काम करना ही था वी करता रहा और कुछ वक्त में ही उसने वो ईमारत तैयार कर दी। जब वो नकारा सही हुआ तो मिस्त्री उसे शहर ले कर आया। और वही ईमारत दिखाई जो इस बार उसने बनाई थी। और कहा ये देख तेरे जाने के बाद ये बनाई है। वो तो नकारा था। उसने फिर उसे झुठला दिया। के नहीं ऐसा हो ही नहीं सकता।
तू और ऐसी ईमारत बनाये अबे जा अभी तू बच्चा है। जब में नहीं था हो सकता है।  मेरे जाने के बाद इस ईमारत के मालिक ने कही से ये बनी बनाई खरीदी होगी। बहुत समझाया पर वो नहीं माना। आखिर कार उस मिस्त्री को यही कहना पढ़ा के हा भाई चल तू जीता में हारा ये उस मालिक ने कही से खरीदी है बस। उसने कहा हा देखा न अब आया लाइन पे।
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यहाँ तक पहुचने के लिए शुक्रिया। अब इस पोस्ट के असल मुद्दे पर आता हु। इस पोस्ट का मकसद था। के वो हक़ीक़त दिखाना जो यहाँ शोशल साइट्स पर अक्सर लोग नहीं जानते और वो लोग पोस्ट लिखने वालो पे यकींन नहीं करते। उस नकारा से मुराद वो शख्स है। जो किसी छोटे शख्स या मेरे जैसे लड़के के पोस्ट पर यकीन नहीं करते के ये पोस्ट उसने लिखा होगा। और मिस्त्री तो अब आप समझ ही गए होंगे। वही जो लंबी लंबी पोस्ट लिखने वाले हो। वो जो उसके जाने के बाद ईमारत बना लेता है। तो जब नकारा उसे देखता है। तो कहता हैं। ये उसने कही से बनी बनाई खरीदी होगी। उसका भी यही मतलब है। के आपने किसी भी मुद्दे पर कोई पोस्ट लिखा। पर वो यही कहेगा। ये पोस्ट कॉपी किया /चुराया है। आप कुछ भी कह दो। पर उसे यकीन दिलाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
अभी कुछ लोगो तो ये पोस्ट भी कॉपी किया हुआ लगेगा। खैर लगने दो हमें क्या। जिन्हें समझाना था वो समझ गऐ।

सबक। कभी किसी को छोटा बड़ा नहीं समझिये।
इल्म उम्र से नहीं। इल्म वालो के साथ उठने बैठने से हासिल होता है।
एक मिसाल।
एक 10 साल का बच्चा भी हाफ़िज़ ऐ क़ुरआन बन जाता है।
और एक 50 साल के इंसान से बिस्मिल्लाह भी सही से कहना नहीं आता।

उन सभी महाशयों को मद्दे नज़र रखते हुए। में एक शेर अर्ज़ कर रहा हु।

नासमझ की कोई दवा नहीं हकीमो के दवाखानो में।
वो बस हगना जानते है। मेंड़ और खेत खलियानों में।
हकीम दानिश की कलम से।

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